हेलो दोस्तों ,
आज मैं आपके सामने एक पिता एवं पुत्र के जीवन सम्बंधित कहानी पेश कर रहा हूँ। यह एक बड़ी ही मार्र्मिक कहानी है। तो आइये शुरू करते हैं।
ये बात सन 1980 के आस पास की है। भरत के घर एक पुत्र ने जन्म लिया और नाम रखा गया लक्ष्य। लक्ष्य का जब जन्म हुवा तो वह बहुत कमजोर एवं हड्डियों का ढांचा था ,उसकी दादी ने देखते ही बोला " बड़ी मुश्किल से बेटा हुवा वो भी कंकाल " और वो इस तरह से भरत की पत्नी को ताने मारती रहती । आखिर वृद्ध एवं पुराने विचारों की महिला थी तो बेटा-बेटी का भेद तो रखती ही थी। उन्हें बेटा ही चाहिए था और एक हुवा भी तो वो बीमार सा दिखने वाला।
लक्ष्य दिखने में इतना कमजोर था की वह माँ का दूध भी अपने मुँह से नहीं पी सकता था क्युकी उसके होंठो पर इतनी ताकत नहीं थी को वो दूध को अपने मुँह में उतार सके। बड़ी मुश्किल से भरत की पत्नी शैलजा उसे दूध रूई में भिगोकर, रूई उसके मुँह में छोड़ देती ताकि मुँह हिलने पर दूध की बूंदे उसके हलक से नीचे उतरे। और इस तरह से लक्ष्य का लालन पालन हुवा। खैर काल चक्र चलता रहा, और आने वाले दिनों में लक्ष्य स्वस्थ हो गया परन्तु शरीर उसका अभी भी कमजोर था। स्मरण रहे की लक्ष्य से पहले उनकी एक बिटिया थी जिसका नाम सविता था जिसे जाहिर है दादी जी ख़ास पसंद नहीं करती थी क्युकी लड़की जो थी।
सविता एवं लक्ष्य में लगभग 3-4 साल का अंतर था परन्तु दोनों भाई-बहन में बहुत प्यार था। परन्तु लक्ष्य के स्वस्थ होने पर भी दादी को उसके जीवित रहने की कोई उम्मीद नहीं थी क्युकी वह अक्सर आये दिन बीमार होता रहता था। दादी को लगता था पता नहीं इसके साथ कब क्या हो जाय हालांकि दादी लक्ष्य को प्यार बहुत करती थी परन्तु साथ ही साथ चिंतित भी बहुत रहती थी।
अतः दादी जी ने भरत पर दबाब डाला की उसे एक नाती (बेटा) और चाहिए क्युकी लक्ष्य का कोई भरोसा नहीं पता नहीं कब हमें छोड़ कर चला जाय। भरत ने बहुत समझाया की माँ,एक बेटा और एक बेटी हैं बहुत तो है , हमें और बच्चों की जरुरत नहीं है परन्तु दादी थी कि टस से मस नहीं हुवी । बेटा चाहिए तो चाहिए आखिर हमारा वंश को आगे बढ़ने वाला कोई तो चाहिए।
आये दिन इसी बात को लेकर परिवार में कलह होता रहता और, एक और बेटे के चाह में भरत के 5 संताने हो गयीं। सविता एवं लक्ष्य के साथ -साथ अब निरंजना (पुत्री) + अनूप (पुत्र) + संवेदना (पुत्री) और इस तरह से भरत के पांच संताने घर में पलने और बढ़ने लगी। शुक्र था की भरत की सरकारी नौकरी थी इसलिए बच्चों का लालन-पालन ठीक ठाक ढंग से होने लगा। भरत के सभी बचे अब स्कूल में पढ़ने वाले हो गए थे।
सविता जूनियर स्कूल से लेकर इंटरमीडिएट तक टॉप क्लास की धाविका थी क्युकी वह बहुत तेज दौड़ती थी और हर रेस में वह अब्बल आती थी जिससे घर में चारों तरफ उसके नाम के मैडल दिखते थे। हर कोई खुश था। हालाँकि दादी कहा करती थी " इन मेडलों का क्या अचार डालना है "।
एक बार भरत अपनी नौकरी के सिलसिले में शहर से दूर गया और इसी बीच सविता का सिलेक्शन स्टेट लेवल की रेस में हो गया परन्तु दादी ने साफ़-साफ़ मना कर दिया की जवान लड़की को घर से बाहर अकेले नहीं भेजेंगे। हालाँकि शैलजा ने आग्रह भी किया की लक्ष्य भी साथ में जायेगा परन्तु दादी ने कहा लक्ष्य वैसे अभी बहुत छोटा है और ऊपर से डेढ़ पसली , नहीं वो साथ में नहीं जायेगा , वो क्या ,कोई कही नहीं जायेगा और इस तरह से सविता का स्पोर्ट्स का सपना वही पर ढेर हो गया। और उसके बाद उसने कॉलेज की नार्मल पढाई शुरू कर दी।
अब आतें है लक्ष्य पर - लक्ष्य बचपन में बहुत शरारती था और साथ में नटखट भी। आये दिन उसकी शिकायते घर पर पहुंच जाती थी। हर एक दिन शाम को उसके घर पहुंचने से पहले उसकी शिकायत घर पहुंच जाती थी। माँ शैलजा उसकी इन हरकतों की वजह से बहुत परेशान थी।
अतः उसने भरत से बात कर उसे भी अपने साथ ले जाने का आग्रह किया। भरत को भी ये बात जँच गयी सो उसने बिना किसी रुकावट के लक्ष्य को अपने साथ अपनी नौकरी वाली जगह पर ले जाना स्वीकार कर लिया। दादी और माँ बड़े भरे हुए मन से राजी हो गए। यहाँ से लक्ष्य के जीवन का एक नया सफर प्रारम्भ हो चूका था।
वो लक्ष्य का पहला दिन था, जिस दिन वह पिता के साथ दूर शहर में पढाई करने व रहने जा रहा था। उसका तो कतई भी मन नहीं था पिता के साथ जाने का क्युकी वह पिता से बहुत डरता था और माँ से तो वह बहुत प्यार करता था ,और दादी का तो वो लाडला था ही । पिता के साथ जब वह शहर की तरफ रवाना हुवा तो मुड़-मुड़ कर देखता -कभी अपनी माँ को, कभी दादी को तो कभी अपने भाई-बहनो को कि काश कोई उसे रोक ले परन्तु नियति का लेखा यही था और लक्ष्य चल पड़ा एक नए सफर के लिए।
शहर में आने पर नए लोग, नया स्कूल, नए दोस्त और सबसे बढ़ी बात नया माहौल। उसे जरा भी रास नहीं आ रहा था , वह पिता के सामने रोकर भी अपना दुःख बयान नहीं कर सकता था क्युकी हर रोने पर उसको पिता का थप्पड़ पड़ता इसलिए वह मजबूर होकर रो भी नहीं पाता। पिता के कड़े अनुसासन ने उसे भी अनुशासित बना दिया था। परन्तु पिता से उसे आज भी बहुत डर लगता है .
लक्ष्य पढाई-लिखे में बहुत तेज था। हर बार हर कक्षा में वह प्रथम श्रेणी में पास होता। गणित में वह थोड़ा कमजोर था परन्तु भरत के अनुशासन एवं शिक्षा ने उसे हर विषय में अब्बल बना दिया था। भरत को एहसास हो गया था कि यह लड़का बढ़ा होकर कुछ न कुछ बनेगा और मेरा नाम रोशन करेगा। और इस तरह लक्ष्य के दिन बीतने लगे।
इसी बीच भरत को शराब कि बढ़ी गन्दी लत लग चुकी थी। वह आये दिन शराब पीकर घर आता और लक्ष्य को मारता-पीटता। पढाई लिखाई के बहाने तो लक्ष्य कि पिटाई होती ही थी अपितु हर छोटी-बढ़ी गलती पर लक्ष्य अपने पिता की मार खाता और आये दिन उसका कभी दांत टूट जाता तो कभी होंठ फट जाता। लक्ष्य के लिए यह बहुत बुरा एवं डरावना था क्युकी उसने आज तक ऐसा माहौल कभी नहीं देखा। अब तो वह पिता से बहुत खौफ खाने लगा। खैर इसी तरह लक्ष्य का जीवन आगे बढ़ता रहा और पिता के लिए उसके मन में नफरत के बीज ने जन्म ले लिया था।
भरत की शराब पीने की लत इतनी बुरी हो चुकी थी कि वह आए दिन अपनी पत्नी शैलजा पर भी हाथ उठा देता था परिवार के सभी सदस्य भारत के इस व्यवहार से अचंभित एवं परेशान भी थे. समय बिता गया, और इसी बीच भरत की माताजी अर्थात लक्ष्य की दादी का देहांत हो चुका था.
भरत को अब शराब पीने की लत से रोकने के लिए डांटने वाला या उसे समझाने वाला अब उस परिवार में कोई भी नहीं था क्योंकि एकमात्र दादी ही एक ऐसा इंसान उसे परिवार में थी जो भारत को डांट देती या समझाने की कोशिश करती थी। , क्योंकि भरत परिवार में ना तो कभी पत्नी की सुनता था और नहीं बच्चों की अतः इस प्रकार उसे पूर्ण आजादी मिल गई थी .अब वह शराब के साथ-साथ सिगरेट बीड़ी तंबाकू आदि न जाने कौन-कौन से व्यसन करने लगा था. परिवार के सभी लोग भरत की इस आदत से परेशान थे.
परंतु जब भरत शराब नहीं पीता था, तो उस अवस्था में वह एक बहुत ही सज्जन पुरुष की भांति व्यवहार करता था. और समाज के लोग उसकी इज्जत भी करते थे. परंतु शराब पीने के बाद वह बिल्कुल जानवर की भांति व्यवहार करता था. और इन सब का जो प्रभाव था, वह बच्चों की परवरिश और बच्चों की जो शिक्षा थी उसे पर भी पड़ रहा था.
हालांकि भरत को अपने बच्चों की शिक्षा और भविष्य की बहुत चिंता रहती थी, परंतु वह अपने शराब पीने की आदत को छोड़ नहीं पा रहा था। इसी बीच समय बीतता रहा और लक्ष्य 10वीं की कक्षा तक पहुंच गया। हालांकि दसवीं से पहले वह सभी कक्षाओं में हमेशा प्रथम श्रेणी में ही पास होता था. स्कूल के सभी अध्यापक व स्टाफ के लोग लक्ष्य की वजह से ही भरत को भी जानने लगे थे और उसकी इज्जत करने लगे थे. परंतु भरत की शराब पीने की आदत से वह भी अनभिज्ञ नहीं थे. अपने पिताजी की इस आदत की वजह से लक्ष्य शराब पीने वालों से सख्त नफरत करने लगा था।
धीरे धीरे वह पढ़ाई में मन लगाने लगा परंतु अपने पिता की शराब पीकर शोर शराबा करना, दूसरे लोगों से लड़ना झगड़ना आदि, इन आदतों से वह बड़ा परेशान रहता था. फिर भी उसने पढ़ाई में मन लगाकर के अपनी दसवीं की कक्षा के पेपर पूर्ण रूप से और पूर्ण लगन से दिए. परंतु जिस दिन दसवीं का रिजल्ट आया तो लक्ष्य प्रथम श्रेणी की जगह द्वितीय श्रेणी में पास हुआ.
उसे उस दिन बहुत बड़ा झटका लगा. उसे अपने परिणाम पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं हो पा रहा था कि वह द्वितीय श्रेणी में पास हुआ है. परंतु वह करता भी तो क्या अपने पिता की वजह से वह सारे साल भर अपनी पढ़ाई में और अपने अध्ययन में पूर्ण रूप से ध्यान नहीं दे पाया जिसका परिणाम आज यह हुआ कि वह दसवीं की कक्षा में द्वितीय श्रेणी में पास हुआ. इसी तरह से लक्ष्य ने आगे की पढ़ाई जारी राखी हालांकि वह बाद की कक्षाओं में प्रथम श्रेणी में पास होता रहा और अंत में उसने मास्टर डिग्री गणित के माध्यम प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और उसके बाद वह अन्य कोर्स भी करता रहा.
समय बीतता रहा और लक्ष्य विवाह योग्य हुआ ,भरत उसका विवाह एक सुयोग्य कन्या से करवा दिया। इसी तरह से अन्य भाई बहनों की शादी भी हो चुकी थ। भरत अब अपने जीवन के उसे पड़ाव में पहुंच चुका था जहां पर लोग अक्सर अपनी सरकारी नौकरियों से रिटायर हो जाते हैं। तो भरत भी अपनी सरकारी नौकरी से सेवानिवृत हो चुका था परंतु भरत अब पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं था
क्योंकि शराब पीने की आदत और बीड़ी सिगरेट पीने की आदत ने उसको पूर्ण रूप से अस्वस्थ कर दिया था. लक्ष्य और उसका छोटा भाई अनूप दोनों अब बाहर शहर में नौकरियां करते थे हालांकि वह सरकारी नौकरी में नहीं थे परंतु निजी क्षेत्र में भी वह अच्छी नौकरी करते थे और अपने घर का और अपने माता-पिता का अच्छे से रखरखाव और ख्याल रखते थे.
जीवन के एक पड़ाव में भरत को पता ही नहीं चला कि कब उसे शुगर की बीमारी हो चुकी है जब तक उसे पता चलता तब तक काफी देर हो चुकी थी और इसी पड़ाव में एक बार शुगर की वजह से उसे गैंग्रीन नाम की एक बीमारी ने जकड लिया था। इस भयंकर बीमारी में लक्ष्य ने अपने पिता भरत का पूर्ण साथ दिया और उनको उस बीमारी से निजात दिलाकर उन्हें स्वस्थ रूप से घर ले आया। भरत अभी भी शराब और बीड़ी सिगरेट की लत से जूझ नहीं पाया था वह अभी भी शराब और बीड़ी सिगरेट का सेवन करता था.
भरत को अपने दोनों बेटों पर पूर्ण विश्वास था अतः उसे यकीन हो गया कि उसे फेफड़ों का संक्रमण न होकर कोई अन्य छोटी बीमारी है जिसकी वजह से उसके फेफड़ों पर सांस की तकलीफ हो रही है तो वह निश्चिंत होकर घर आया और दवाइयां का सेवन करने लगा. धीरे-धीरे बीमारी बढ़ने लगी परंतु लक्ष्य और अनूप ने अपने पिता की सेवा में जरा भी कसर नहीं छोड़ी और वह जी -जान से अपने पिता की सेवा करने लगे.
एक दिन लक्ष्य भरत को नहला रहा था। भरत को जैसे शरीर में जान ही न हो वह लक्ष्य की बाहों में इधर से उधर लुढ़कने लगा. यह देख लक्ष्य अपने पिता को गौर से देखने लगा और वह पिता को नहलाते-नहलाते रोने लगा. पिता ने पूछा कि तू रो क्यों रहा है ? लक्ष्य तो पहले बात को टालता रहा परंतु नम आंखों से वह इतना ही कहा पाया की पिताजी इस सृष्टि की यह कैसी विडंबना है, जब पिता ......अपने बेटे को ......नहलाता है तो ........दोनों हंसते हैं....... परंतु जिस दिन बेटा,....... अपने पिता को नहलाता है........ उस दिन दोनों रोते हैं..... इसलिए मैं आज रो रहा हूँ। आपकी ये हालत मुझसे देखी नहीं जाती पिताजी।
हालांकि भरत को एहसास हो ही गया था कि उसे कोई गंभीर बीमारी है और लक्ष्य और परिवार वाले उसको यह बात जानबूझकर नहीं बता रहे हैं ताकि उसकी जो जिंदगी बची है वह उसे पूर्ण रूप से एवं तनाव रहित होकर जी सके. भरत ने बड़े धीमे से लक्ष्य की ओर मुंह करके बोला "बेटा आज तक मैंने तुझे हमेशा से डांटा ,डपटा और छोटी-छोटी बातों पर तुझे मारता रहा, बेटा मुझे माफ करना।
आज मेरा मन तुझे अपने गले से लगाने को कर रहा है". लक्ष्य का इतना सुनना था कि उसकी आँखों से अश्रु धारा बह निकली वह रोते हुए अपने पिता से बोला , "हां पिताजी क्यों नहीं मैं तो आपको न जाने कब से गले लगाने की सोच रहा था परंतु डरता था कि कहीं आप बुरा ना मान जाए और मुझे फिर से ना डांटे और यह कहते हुए लक्ष्य ने अपने पिता को अपने सीने से लगा लिया और दोनों बहुत जोरों से बहुत देर तक रोने लगे". मानो वर्षों का रुका हुवा भावनाओं का यह बांध पिता-पुत्र कि आँखों से आज आंसुओं के रूप में बाहर बह निकला हो। सारी शिकायतें और नाराजगी आज इन अश्रु धराओं के साथ बह गयी हों।
परंतु थोड़ी देर में लक्ष्य को लगा कि पिताजी कोई हरकत नहीं कर रहे हैं उसे लग गया था कि उसके पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे और वह जोर-जोर रोने लगा और भीगी हुवी पलकों से अपने पिता का निढाल हुवा शरीर देख रहा था जो की लक्ष्य की बाहों में मानो बहुत दिनों के बाद सुकून के साथ आराम कर रहा हो। मानों कह रहा हो "बेटा आज चैन की नींद आयी है " लक्ष्य की आंखों में आंसुओं के साथ बचपन के सारे मंजर तैरने लगे जो उसने भरत के साथ बिताये थे। बचपन में अपने पिता की कंधों पर जब वह बैठता था तो पिता उसे उछाल-उछाल के हंसाते थे।
पिता जी जब उसे मारते थे तो वह मंजर भी उसकी आँखों में आ गया। पर आज उसे अपने पिता की मार का जरा भी दुःख नहीं है , जरा भी गुस्सा नहीं है , उस वक़्त भी अपना गुस्सा उसने किसी को भी नहीं दिखाया तो आज तो पिता उसे छोड़ कर चले गए। आज वह मन से बहुत दुखी है कि आज उसके पिता का साया उसके सर से उठ गया आज वह अकेला हो गया बहुत अकेला , ऐसा लग रहा है जैसे कि लक्ष्य के सर से किसी ने छत को ही उड़ा दिया आज वह अपना आपको बहुत अकेला महसूस कर रहा है.बहुत अकेला
कहानी का सार :- इस कहानी के माध्यम से मैं अपने सभी पाठकों को बतलाना चाहता हूँ की माँ-बाप चाहे कैसे भी हों , अंत समय में सभी के सामने लक्ष्य के जैसा मंजर आता है। अतः जीते जी अपने माँ-बाप के साथ प्रेम, स्नेह एवं सम्मान पूर्वक व्यवहार करें। उनकी कठोरता, कड़वी बातों को नजर अंदाज़ करने की कोशिश करें। क्युकी इस जन्म का पाप लेकर वापस इसी पापी दुनिया में आना पड़ेगा। और अंत में एक बात और - यह कहानी एक सच्ची कहानी है




