अपराध किया है तो सजा मिलेगी ही

बिल्ला दिल्ली का जाना माना गुंडा था. प्रारंभ में वह जब दिल्ली आया था, तो दिल्ली शहर में छोटी-मोटी नौकरी करके वह अपना गुजारा भत्ता निकालता  था. शुरू में उसने एक पान की रेहड़ी पर काम किया परंतु वहां उसका मन नहीं लगा तो उसने एक होटल में काम करने की राह पकड़ ली. दो-तीन साल काम करने के पश्चात उसका वहां भी मन नहीं लग रहा था।  अतः वह वहां से भी निकल कर किसी नई जगह नौकरी करना चाह रहा था. अपने मालिक से बात कर और अपना पूरा हिसाब किताब करके वह होटल की नौकरी छोड़ चुका था.



परंतु उसे अभी तक नई नौकरी नहीं मिली थी. एक दिन वह नौकरी की तलाश में ऐसे ही सड़क पर जा रहा था तो अचानक पीछे से एक आदमी भागता हुआ आया और उससे टकरा गया परंतु टकराते टकराते उस आदमी का बैग नीचे गिर गया. बिल्ला को तो पहले बहुत गुस्सा आया वह चिल्लाया और बोला "अंधा है क्या देखकर नहीं चल सकता", परंतु उस आदमी ने बिल्ला को जवाब देने के बजाय उठकर वहां से भाग गया. बिल्ला आश्चर्य चकित रह गया और सोचने लगा कि अपना बैग यहां पर छोड़कर यह आदमी आगे क्यों भाग गया?

तभी उसको पीछे से पुलिस के दो चार आदमी उसकी तरफ आते हुए दिखे और जैसे ही पुलिस वाले उसके समीप पहुंचे उन्होंने वहां पर वह बैग देख लिया और बिल्ला से पूछा कि जिस आदमी के पास यह बैग था वह कहां है?  बिल्ला थोड़ा डर गया था और बोल "साब  वह उस तरह भागा  है"।  पुलिस वाले ने उसको धन्यवाद बोला और उसके कंधे को थपथपाया 

बिल्ला ने पूछा कि "साहब यह आदमी कौन था" और "यह अपना बैग यहां पर छोड़कर क्यों भाग गया?" तो पुलिस वाला बोला " तू बड़ा भोला है ? यह एक तस्कर है और दिल्ली शहर में यह शराब की तस्करी करता है और इसी बैग में वह शराब लेकर भाग रहा था परंतु हमें भनक लग गई थी तो हम इसका पीछा कर रहे थे तो यह वहां से भाग गया चलो इसका बैग तो मैं मिल गया. 

"सुन भाई " तेरा नाम क्या है? पुलिस वाले ने पूछा ।  बिल्ल..... बिल्ला साहब ! "कहाँ का रहने वाला है ? साब बरेली उत्तर प्रदेश का हूँ।  यहां नौकरी की तलाश में आया हूँ।  पुलिस वाला बोला ठीक है।  अगर ये आदमी  दुबारा कही दिखे तो पुलिस वालों को सूचित कर देना।  "ठीक है साब " कर दूंगा।  बिल्ला सहम कर बोला। 

रात के वक़्त वह अपने कमरे में अपने दोस्त के साथ बैठ कर खाना खा रहा था परन्तु उसका दिमाग उस तस्कर के बारे में सोच रहा था।  "क्या हुआ भाई " तेरा ध्यान कहाँ है? खाना क्यों नहीं खा रहा है?" उसके दोस्त ने उससे पूछा।  हाँ हाँ हाँ खा रहा हूँ। 

अचानक बिल्ला की तन्द्रा टूटी और वह खाना खाने लगा।  "अच्छा सूरज ये तस्कर क्या होता है" ? "और ये काम क्या करता है"? बिल्ला ने पूछा।  "अबे तुझे क्या हुआ अचानक? ये आज तस्कर के बारे में क्यों पूछ रहा है? अरे कुछ नहीं वो आज दिन में हुआ यूँ कि......और बिल्ला ने उसे पूरी कहानी बता दी। 

देख भाई बिल्ला ये तस्कर एक प्रकार का चोर या अपराधी होता है जो अवैध तरीके से महंगी चीजों को इधर से उधर करता है और इस काम के लिए उसे पैसे मिलते हैं।  उसे पैसा कौन देता है ? बिल्ला ने उत्सुकतावश पूछा।  अरे कौन देगा ? वही जो उसे ये काम देगा करने को।  चल अब खाना खा न।  "ए सूरज एक आखिरी सवाल" , ये कमाता कितना होगा तस्करी करके ? अरे मुझे क्या पता ? मैं थोड़े कोई तस्करी करता हूँ ? सूरज बोला। 


फिर भी एक आईडिया तो होगा तुझे ? बिल्ला ने पूछा।  "यार बिल्ला मुझे तो इसके बारे में कोई ख़ास जानकारी नहीं है पर हाँ मैंने भी दोस्तों से जाना है कि ये तस्कर पूरे महीने में तो इतना कमा लेते हैं जितना हम सारा साल में नहीं कमा पाते। सूरज फिर बोला - "पर भाई ये गलत काम है" ,अपराध है"।  "पुलिस वाले कब धर देंगे पता ही नहीं चलेगा"।  "जिदंगी बर्बाद हो जाती है इस धंधे मे"। 

"अब चल न , खाना खा और मुझे भी खाने दे"।  "पूछ तो ऐसे रहा है जैसे बिल्ला साहब कल से तस्कर बनेंगे", कहते हुए सूरज जोर-जोर  से हॅसने लगा। खाना खाने के बाद दोनों सो गए परन्तु बिल्ला की आखों में नींद नहीं थी।  बस वह तस्कर एवं तस्करी के शार्ट कट के बारे में सोचने लगा। 

सुबह उठकर सूरज तो चला गया अपनी मजदूरी पर , परन्तु बिल्ला आज दिनभर घर पर ही था।  उसका मन बहुत पैसे कमाने का हो रहा था।  सूरज की एक-एक बात उसके कानों में अभी तक गूँज रही थी। वह तस्करी के बारे में और जानना चाहता था परन्तु उसे अवसर नहीं मिल रहा था और पूछे भी तो किस से। 

दिन यूँही बीतने लगे पर बिल्ला को अभी तक कोई ढंग की नौकरी नहीं मिली थी ,या यूँ कहें कि वह नौकरी करना ही नहीं चाहता था क्यूंकि उसके मन पर तस्करी का भूत अपनी जगह बना चुका था।  लगभग दो महीने बीत गए।  सूरज ने बोला "यार बिल्ला तू हमारे साथ ही दिहाड़ी-मजदूरी क्यों नहीं कर लेता ? कुछ तो पैसा मिलेगा।

बिल्ला बोला - नहीं यार मैं करूँगा  तो कुछ बड़ा ही करूँगा।  तू कमरे के किराये और राशन वगैरह के खर्चे की चिंता न कर।  इतना पैसा अभी है मेरे पास।  सूरज बोला "यार मैं खर्चों की बात नहीं कर रहा हूँ। मैं तेरे जिंदगी की बात कर रहा हूँ।  अभी तू 20-22 साल का है ,जवान है ,मजबूत कद काठी का है ,मजदूरी कर सकता है, तो क्यों नहीं करता है ? बिल्ला बोला - नहीं यार मैं कुछ और ही कर लूंगा ,मजदूरी नहीं करनी है।  सूरज उसे समझाता रह गया परन्तु बिल्ला नहीं माना। 

एक दिन बिल्ला एवं सूरज अपने कमरे में बैठ कर रात के भोजन की तैयारी कर रहे थे कि अचानक बत्ती गुल हो गयी।  "अरे यार इस लाइट को भी अभी जाना था ? सूरज चिल्लाया।  बिल्ला बोला - तू तब तक खाना बनाने की तैयारी कर मैं बाजार जाकर मोमबत्ती ले आता हूँ और इतना कह कर बिल्ला पास के ही बाजार में मोमबत्ती खरीदने चला गया। 


मोमबत्ती लेकर वह वापस आ ही रहा था कि तभी उसकी नज़र पास में साइकिल वाले पर पडी।  वह साइकिल पर पंक्चर आदि लगाता था।  वह अपनी दुकान बढ़ा रहा था क्युकी रात हो चली थी।  बिल्ला की नज़र जैसे ही उस पर पडी उसे ध्यान आया कि इस आदमी को उसने कहीं देखा है पर कहाँ? याद नहीं आ रहा था। खैर मुझे क्या लेना इस साइकिल वाले से? और यह सोच बिल्ला घर आ गया। 

दोनों ने भोजन किया और सोने चले गए।  अचानक बिल्ला को सोचते-सोचते याद आया कि वो साइकिल वाला वही आदमी है जो उस दिन शराब से भरे बैग के साथ उससे टकराया था। और पुलिस उसका पीछा कर रही थी।  ओ तेरी ! वह जोर से चिल्लाया ! अबे क्या हुआ ? सूरज भी चिल्लाया ! सोता क्यों नहीं यार सोजा न।  कुछ नहीं ! कुछ नहीं ! बिल्ला बोला। बिल्ला अपनी आखों में एक अजीब सी चमक लिए सो गया। 

सुबह बिल्ला उठा और तैयार होकर उसी साइकिल वाले से मिलने बाजार चला गया।  सूरज भी तब तक अपनी मजदूरी करने चला गया था।  बिल्ला उठकर सीधे साइकिल वाले की टपरी पर जा पहुंचा और बोला "और भाई क्या हाल चाल हैं ? "सब अच्छा है बाबू जी  साइकिल वाले ने उत्तर दिया"।  बाबू जी आपकी साइकिल कहाँ है ? हवा भरनी है क्या ? या पंक्चर लगवाना है ? बिल्ला बोला - "दारु चाहिए मुझे"। 

क्या ? अरे बाबू जी दारु चाहिए तो ठेके पर जाइये न यहां मेरे पास क्यों चले आये ? मैं साइकिल वाला हूँ ,ठेके वाला नहीं"।  बेटा  शराब का बैग तो बहुत करते हो इधर से उधर और यहां संत बने बैठे हो ? ये... ये... .. ये... क्या बकवास कर रहें हैं आप बाबू जी ? मैं साइकिल वाला हूँ कोई शराब बेचने वाला नहीं"


अब ज्यादा नौटंकी मत कर बे ! मुझे सब पता है तेरे बारे में।  तू एक तस्कर है और शराब की तस्करी करता है और कुछ महीनों पहले तू मुझ से टकराया भी था जब तेरा शराब से भरे हुआ बैग पुलिस वालों ने धर लिया था।  कुछ याद आया ? या फिर मैं जाऊं पुलिस वालों के पास की आपका चेहता तस्कर यहां साइकिल पर पंक्चर लगाता है। 

अब साइकिल वाला थोड़ा गंभीर हो गया था और बोला " आप मुझ से चाहते क्या हैं ? बिल्ला बोला - देख मेरे को भी इस धंधे में उतरना है और बहुत जल्द एक अमीर आदमी बनना है।  बोल करेगा मेरी मदद ? वैसे तेरा नाम क्या है बे ? जी जी  मेरा नाम अहमद है।  ओह तो अहमद भाई मैं तेरी शिकायत नहीं लगाऊंगा बस तू मुझे इस धंधे में काम दिलवा दे।  अब अहमद हक्का-बक्का था कि एक आदमी सामने से उससे इस धंधे में उतारने के लिए बोल रहा है। 

अहमद बोला - साब मैं इस धंधे में बहुत सालों से हूँ और ये धंधा बहुत खतरनाक है।  यहां कदम कदम पर पुलिस वाले हमें ही सूंघते हैं।  बिल्ला बोला ये साब साब क्या लगा रखा है मेरा नाम बिल्ला है।  अहमद बोला - तो बिल्ला भाई मैं आपको अभी भी बोल रहा हूँ यहां बहुत खतरा  है। "तू खतरे को मुझ पर छोड़ दे बस काम दिला। बिल्ला स्टाइलिश अंदाज़ में बोला। अहमद बोला तो ठीक है बिल्ला भाई आप मुझे आज रत ठीक 8 बजे यहीं पर मिलना।  हम दोनों यहीं से अपने बॉस के पास जायेंगे जहां से हमें काम मिलेगा ।

ठीक है बिल्ला बोला।  मैं तुम्हे यहां पर ठीक 8 बजे मिलता हूँ और यह कहकर बिल्ला अपने कमरे पर आ गया।  अब तो उसे दिन बहुत बड़ा लगने लगा था।  वह रात होने का इन्तजार कर रहा था कि कब रात हो और वह अहमद से मिले। खैर रात होने को आयी तो बिल्ला झट से तैयार हो गया अहमद से मिलने के लिए परन्तु तभी सूरज भी आ गया था।

बिल्ला को जाते देख सूरज बोला - हाँ भाई कहाँ कि तैयारी हो रही है ? यार सूरज मुझे काम मिल गया है और मैं वही करने जा रहा हूँ।  काम मिल गया है मतलब ? इतनी रात को तू काम पर जायेगा ? अरे भाई कोई नाईट ड्यूटी वाला काम मिला है क्या ? बिल्ला बोला - "हाँ भाई नाईट ड्यूटी वाला ही काम मिला है मुझे।  चल ठीक है , आखिर तुझे काम मिल ही गया।  खाना बाहर ही खायेगा क्या ? सूरज ने  पूछा ।  हाँ मैं खा लूंगा और यह बोलता हुआ बिल्ला वहाँ से चला गया। 

ठीक 8 बजे वह अहमद कि दुकान पर पहुंच गया।  वहाँ से अहमद उसे अपने सेठ अंसारी के पास ले गया।  उसने अंसारी से पहले ही दिन में बात कर ली थी कि वह एक नए आदमी को काम पर लाएगा और उस नए आदमी को काम कि सख्त जरुरत है। 

अंसारी ने पूछा - देख अहमद तेरे रिस्क पर मैं नया आदमी रख रहा हूँ।  अगर कोई लोचा हुआ तो तेरी खैर नहीं।  अहमद बोला -"नहीं अंसारी भाई कुछ लोचा नहीं होगा इसको मैं जानता हूँ। यह यू पी के किसी गांव से आया है।  शरीफ है।  काम ईमानदारी से करेगा।  चल ठीक है अगर तो इतना बोल रहा है तो बुला उसे यहां , मैं बात करता हूँ उससे। 

बुलाने पर बिल्ला अंसारी के नजदीक गया।  दोनों बाजुओं को बांधकर वह चुपचाप सर झुकाये अंसारी के समीप खड़ा था। अंसारी ने पूछा - देख भाई तुझे मैं अहमद के बोलने पर काम पर रख रहा हूँ।  हमारे धंधे में भी ईमानदारी चाहिए होती है।  इसलिए तू ईमानदारी से काम करे मैं ये चाहता हूँ और उसके बदले तुझे प्रत्येक काम के Rs. 800 मिलेंगे। अगर तू पूरे दिन भर में भी 3 डिलीवरी भी करेगा सबकी नजरों से बच कर ख़ास कर पुलिस वालों कि नजरों से बचकर तो तेरा दिन भर का  2400-2500 रुपया कहीं नहीं गया।  और काम अच्छा करेगा तो Rs. 800 का 1300 कर दूंगा।  बोल मंजूर है तो आज से काम पर लग जा। 


दिन का 2500  सुनकर तो बिल्ला के होश उड़ गए।  उसके बाप दादा ने भी कभी इतने पैसे नहीं देखे थे।  2500  के हिसाब से तो महीने के 75000  हो रहे थे।  बिल्ला की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था।  उसने झट से हाँ बोल दिया - "साब पूरी ईमानदारी से काम करूँगा। " अंसारी बोला - अहमद ठीक है बिल्ला को काम समझा दे और कहाँ किसे देना है एड्रेस वगैरह सब दे दे।  ठीक है अंसारी भाई, अहमद बोला। 


अहमद ने उसे शराब की 25  बोतलों से भरे हुवा एक बैग दिया और बोला तुझे ये बैग ग्रीन पार्क की "सलूजा कोठी" के सिक्योरिटी गार्ड को देना है।  पर ध्यान रहे अगर किसी ने पकड़ लिया या पुलिस ने धर लिया तो , मैं तुझे नहीं जानता हूँ और तू मुझे नहीं जानता है " समझा न ? हाँ हाँ समझ गया ,बिल्ला बोला। और बोतलों से भरे हुआ बैग लेकर बिल्ला "सलूजा कोठी" पहुँच गया।

वहाँ उसने वह बैग सिक्योरिटी गार्ड इम्तियाज़ को दे दिया।  और वहाँ से वापस आया तो अंसारी ने उसकी पीठ थपथपाई और कहा "शाबाश" तू तो बड़ा कमाल का बन्दा है यार।  बिना किसी मुश्किल के तूने बैग इम्तियाज़ को दे दिया।  बहुत अच्छा।  ये ले तेरे रुपये ।  Rs. 800 को हांथों में लेकर बिल्ला बहुत खुश था।

आज तक एक दिन में उसने इतना पैसा कभी भी नहीं कमाया था।  वह बोला साब यदि कोई और काम अभी करना हो तो दे दो मैं वो भी कर लूंगा।  उसकी काम की सनक को देख कर अंसारी भी चकित था ।  बोला कोई नहीं कल से तू पूरे लगन और मेहनत से ये काम करना। और उस रात बिल्ला ने मानो कोई विजय फ़तेह कर ली हो।  उसे उस रात सपने भी इसी तरह के आने लगे .

और इस प्रकार बिल्ला रात-दिन तस्करी का काम करने लगा।  उसकी किस्मत बहुत अच्छी थी कि वह कभी भी पुलिस कि रडार में नहीं आया।  इसलिए  बखूबी वह अपना काम करता रहा और अवैध पैसे कमा कर वह एक दिन बहुत अमीर हो गया। 

सूरज उसकी तरक्की देख कर हैरान था।  वह समझ गया था कि बिल्ला जरूर कोई गलत काम कर रहा है जिसकी वजह से उसके पास इतने कम समय में इतना सारा पैसा आ गया।  सूरज को अब पूर्ण विश्वास था कि बिल्ला जरूर तस्करी का ही काम कर रहा है। खैर  मुझे क्या ? गलत काम का नतीजा भी गलत ही होता है।  अपने आप ही फसेगा एक दिन ।

एक दिन अंसारी और बिल्ला कि किसी बात पर बहस हो गयी।  बिल्ला बोला- अंसारी भाई मेरी मेहनत के पैसे हैं तो मिलने चाहिए न , आप तो मेरे हक़ का पैसा मार रहे हो।  अंसारी यह सुनकर आग बबूला हो गया और गुस्से में उसने बिल्ला को दो-चार थप्पड़ रशीद दिए।  बिल्ला को बहुत गुस्सा आया और उसने उसी गुस्से में अंसारी के पेट में एक नहीं ,दो नहीं तीन नहीं बल्कि 10  बार चाक़ू से हमला कर दिया जिसकी वजह से अंसारी की वहीं पर मौत हो गयी।

अहमद यह देख कर हैरान हो गया और बोला -"अबे बिल्ला ये तूने क्या किया ? अंसारी भाई को मार दिया ? साले अब हमारे धंधे का क्या होगा ? अबे धंधा तो छोड़ पुलिस तुझे अब नहीं छोड़ेगी ? मैं तो अंडर ग्राउंड हो रहा हूँ।  मेरी मान तू भी हो जा।  और इतना कह कर अहमद वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गया।  बिल्ला का जब गुस्सा ठंडा हुआ तो उसे अहसास हुआ कि उसने गलत कर दिया और उसी रात वह दिल्ली से ट्रैन पकड़ कर बरेली अपने शहर आ गया। 


दिन , महीने साल बीत गए।  बिल्ला अब 50  की उम्र पार गया था।  दिल्ली में किये गए तस्करी के धंधे से उसने बरेली में अपने लिए एक टैक्सी खरीद ली थी और उस टैक्सी से वह अपना गुजर-बसर कर रहा था।  हालाँकि अब बिल्ला के स्वभाव में काफी परिवर्तन आ गया था। वह अब मृदुभाषी हो गया था और बरेली के आसपास कि जगहों को देखने आये टूरिस्ट लोगो से वह बड़े घुल मिलकर रहता था , उन्हें अपने यहां  के इतिहास के बारे में बताता था।  अब वह धर्म-कर्म के कार्यों में काफी व्यस्त रहता था।  मंदिर में दान करना , साधू संतों को भोजन कराना आदि उसके व्यवहार में शामिल हो गया था। 

एक दिन 4 दोस्त ,रमेश ,रिज़वान ,सैंडी एवं बाबर बरेली घूमने आये थे। उन्होंने बिल्ला कि टैक्सी किराए पर ली और बिल्ला उन्हें पूरा शहर घुमाने लगा।  चारों लड़के फुल मस्ती में रहते थे और उन लड़कों के लड़कपन को देख कर बिल्ला को अपने दिन याद आने लगे कि वह भी कभी इन लड़कों की तरह मस्त रहता था।  लड़कों से उसकी काफी अच्छी दोस्ती हो गयी थी।  उनकी दोस्ती इतनी अच्छी हो गयी थी कि वे सब मिलकर दारु वगैरह और पार्टी वगैरह में जाने लगे थे। 

रमेश बोला - "वैसे तो बिल्ला भाई आप हमसे उम्र में बड़े हो पर क्योंकि हम सब दोस्त हैं तो क्या आपसे हम आपकी जवानी के बारे में कुछ पूछ सकते हैं ? मतलब आप क्या करते थे ?, आपकी शादी कैसे हुई ? भाभी जी कैसी हैं , बच्चे कितने हैं वगैरह वगैरह।  बिल्ला बोला मत पूछो , मैं अपनी जवानी बहुत बुरा आदमी था।  मैंने कभी भी अच्छे काम नहीं किये।  जवानी के दिनों में काम की तलाश के बहाने आपके शहर दिल्ली आया था।  वहाँ काम किया। 

अलग-अलग जगह काम किया पर कहीं भी सुकून नहीं मिला।  पर अंत में मुझे एक अंसारी नाम के आदमी ने काम दिया।  वहाँ मैंने बहुत मेहनत से काम किया और बहुत पैसे कमाए।  ये टैक्सी उन्ही पैसों से खरीदी है।  मैं वहाँ तस्करी का काम करता था।  मुझ पर एक दो बार तो मेरे दुश्मनों ने गोली भी चलाई  थी पर में किस्मत से बच गया था , ये देखो मेरे बाएं कंधे पर गोली का निशान।  और बिल्ला उन्हें गोली का निशान दिखाने लगा।  कुछ दिन मैं तिहाड़ जेल में भी बंद रहा। 

बिल्ला कि कहानी सुनकर उन चारों का नशा फुर्र हो गया।  क्या बिल्ला भाई तुम तो डरा रहे हो। अरे डरो नहीं अब मैं वैसा नहीं हूँ।  मैं अब एक सज्जन आदमी हूँ।  मुझ से डरने की जरुरत नहीं है आपको। रिज़वान बोला - तो फिर भाई वहाँ से यहां तक का सफर कैसे हुआ ? बिल्ला बोला - " वहाँ मेरा और अंसारी का किसी बात पर झगड़ा हो गया था और मैंने गुस्से में अंसारी को मार दिया था । मैं अंसारी का मर्डर कर यहां बरेली आ गया।


कुछ सालों बाद मैंने शादी कर ली परन्तु शादी के ग्यारह साल बाद भी मेरे कोई बच्चा नहीं हुआ।  मैंने बहुत इलाज करवाया पर कुछ हासिल नहीं हुआ।  फिर मुझे एहसास हुआ कि ये सब मेरे कुकर्मों की  सजा है।  बस तभी से मन सद-गति में लग गया।  अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए मैं मंदिर वगैरह में दान करता हूँ , धर्शालाएँ बनवायी हैं मैंने नेकी के काम के लिए।  पर मन अब खुश है कि मैं कुछ अच्छा कर रहा हूँ।  चारों दोस्त बिल्ला कि इमोशनल कहानी सुनकर भाव विव्हल हो गए। 

दो दिन बाद बिल्ला उन्हें बरेली एयरपोर्ट पर बिदा करने गया।  सभी लोग बहुत भावुक थे।  एक दूसरे का मोबाइल नंबर एक्सचेंज किया और भविष्य में एक दूसरे के "टच में रहेंगे" का वादा लेकर सब अपने अपने रास्ते चल दिए। करीब एक हफ्ते बाद गुरूवार का दिन था उस दिन बिल्ला की तबियत कुछ ठीक नहीं थी तो उस दिन वह काम पर नहीं गया।  घर पर ही आराम कर रहा था। 

तभी दरवाजे कि घंटी बाजी "ट्रिंग" ट्रिंग"।  बिल्ला बोला हाँ आ रहा हूँ भाई सब्र तो करो ! दरवाजा खोला तो सामने 4 पुलिस वाले खड़े थे।  उनमसे एक ने पूछा "बिल्ला?।  हाँ मैं ही बिल्ला हूँ।  बोलिये क्या काम है ? चल पुलिस थाने।  और पुलिस वाले उसे जबरन पकड़कर पुलिस थाने ले गए।  अरे साब क्या हुआ ? मुझे क्यों ले जा रहे हो पुलिस थाने? मैंने किया क्या है? अरे मेरा अपराध तो बताओ ? पुलिस वाला बोला जो भी बोलना है थाने में जाकर बोलना।  बिल्ला को समझ में ही नहीं आ रहा था कि आखिर बात क्या है ?    

थाने पहुंच कर बिल्ला ने पुनः दोहराया अरे साब बात क्या है ? आप मुझे यहां क्यों लाये हो ? पुलिस वाला बोला - 'वो सामने देख इंस्पेक्टर साब को " दिल्ली क्राइम ब्रांच से आये हैं तुझे लेने के लिए।  बिल्ला हैरान , "मुझे लेने के लिए ? पर मैने किया क्या है? और ये दिल्ली क्राइम ब्रांच का बरेली में क्या काम ?।  बिल्ला मैं इंस्पेक्टर नेगी , दिल्ली क्राइम ब्रांच से आया हूँ।  तूने आज से कई साल पहले दिल्ली में अंसारी नाम के एक शराब माफिया का खून किया था और मर्डर करने के बाद तो गायब हो गया था।


आज जाकर तो हाथ लगा है। पर साब मैं किसी अंसारी को नहीं जानता।  हाँ मैं दिल्ली में नौकरी करता था पर किसी अंसारी  को नहीं जानता।  इंस्पेक्टर बोला - देख बिल्ला कर्म कभी भी पीछा नहीं छोड़ते।  अपराध किया है तो सजा मिलेगी ही।  पर साब , आपके पास क्या सबूत है कि मैंने किसी अंसारी कि ह्त्या कि है ?

वो तो तुझे दिल्ली जाकर ही पता चलेगा। थैंक यू इंस्पेक्टर एंड यू पी पुलिस। दिल्ली पुलिस के साथ सहयोग करने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस का बहुत बहुत धन्यवाद।  मैं बिल्ला को अगली गाडी से दिल्ली ले जाऊंगा।  और दिल्ली पुलिस बिल्ला को दिल्ली ले आयी और इस प्रकार बिल्ला जिस दिल्ली को वर्षों पहले छोड़ और भुला चुका था उस दिल्ली में उसके कदम दुबारा पड़  गए थे पर इस बार सीधे पुलिस थाने में।

पुलिस थाने में जैसे ही बिल्ला का प्रवेश हुआ उसे वहाँ दो लड़के दिखाई दिए और शायद वह उन्हें जानता था।  फिर ध्यान आया कि ये दोनों तो रिज़वान एवं बाबर हैं जो काफी समय पहले बरेली घूमने आये थे। इंस्पेक्टर बोला - बिल्ला , पहचाना तूने इन दोनों को ? ये बाबर एवं रिज़वान हैं।  ये दोनों उसी अंसारी के बेटे हैं जिस अंसारी का मर्डर तूने वर्षों पहले किया था।  बिल्ला को काटो तो खून नहीं।  उसे विश्वाश ही नहीं हो रहा था कि नियति उसे ऐसे दिन दिखाएगी। 

बिल्ला,अंसारी का केस कई सालों से बंद था क्योंकि हमें कोई गवाह या सबूत नहीं मिला था।  परन्तु कुछ दिनों पहले ये दोनों यहां मेरे पास आये थे और तुम्हारी कहानी बताई जो तुमने इन्हे बरेली घुमाते वक़्त बताई थी।  फिर हमें केस को रीओपन किया और तुझे तेरे मोबाइल नंबर के सर्विलांस से पकड़ लिया।  ये दोनों बच्चे भी अपने पिता के हत्यारे को सजा दिलवाना चाहते थे परन्तु उन्हें ये पता नहीं था कि हत्यारा बरेली में छिपा है।

और किस्मत का खेल देखो उसने ड्राइवर बनाकर भी तुझे ही भेजा इनके पास और तूने यह सोच कर कि इतने सालों में अंसारी के मर्डर की बात लोग और पुलिस दोनों भूल गए होंगे और तूने अपनी कहानी इन लड़को सुना दी।  अब तेरे कर्म ने तेरा हिसाब तो करना ही था सो रिज़वान और बाबर  दोनों अंसारी के बेटे निकल गए। अब हम केस की पूरी तहकीकात करेंगे और तुझे न्यायलय में पेश करेंगे।  जैसी करनी वैसी भरनी बिल्ला।  

बिल्ला की आखों में आंसू थे। उसको अभी भी विश्वाश नहीं था कि वर्षों किये गए मर्डर की सजा उसे आज मिलेगी जब वह बूढ़ा होने कि कगार पर है।  पर अब नियति  के इस फैसले को मानना बिल्ला की नियति बन गयी थी।  उसका केस काफी सालों तक चला परन्तु उसको सजा होने से पहले बिमारी से उसकी मौत जेल के भीतर ही हो गयी।  शायद नियति उसे ये बताना चाहती थी कि "अपराध किया है तो सजा मिलेगी ही "   

 



मेरी कहानियां

मैं एक बहुत ही साधारण किस्म का लेखक हूँ जो अपनी अंतरात्मा से निकली हुई आवाज़ को शब्दों के माध्यम से आप तक पहुँचाता हूँ

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