अंतरिक्ष की सभ्यता का डिकोड मिशन


प्रोफेसर नेगी बहुत देर से अपनी प्रयोगशाला में बैठे अपने किसी आने वाले प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे. इस प्रोजेक्ट पर काम करते-करते 10 साल हो चुके थे. जब वे 25 साल के थे तब उन्होंने इस प्रोजेक्ट पर काम करना प्रारंभ किया था आज वह 35 साल के हो चुके हैं और आज भी लैब में बैठकर इसी प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं.यह प्रोजेक्ट उनका स्वयं का प्रोजेक्ट था और इस प्रोजेक्ट में मानी जानी बड़ी-बड़ी कंपनियों ने इन्वेस्टमेंट किया था.

प्रोफेसर नेगी को यह भली-भांति पता था कि यदि आने वाली 2 सालों में यह प्रोजेक्ट पूर्ण रूप से संपूर्ण नहीं हुआ तो उन्हें तो नुकसान होगा ही साथ ही साथ इस प्रोजेक्ट में इन्वेस्टमेंट करने वाली सभी कंपनियों को बहुत बड़ा नुकसान होगा और इसकी जिम्मेदारी उनकी स्वयं की होगी।   

इसे भी पढ़ें -वर्षों बाद मिलें बिछड़े दोस्त

इन सभी प्रश्नों को अपने दिमाग में लेते हुए प्रोफेसर नेगी  ने अपने इस प्रोजेक्ट को आज अंतिम चरण देने का फैसला ले लिया था. तो आईए जानते हैं कि प्रोफेसर नेगी  के इस प्रोजेक्ट में आखिर ऐसा क्या था कि आने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियों ने इस प्रोजेक्ट में इन्वेस्ट किया था और स्वयं प्रोफेसर नेगी भी इस प्रोजेक्ट को लेकर बहुत गंभीर थे।  

आखिर क्या था इस वाइज़र में 

दरअसल प्रोफेसर नेगी  का यह प्रोजेक्ट दूसरी दुनिया से संबंध रखने वाले लोगों पर था अर्थात इस ब्रह्मांड में कोई दूसरी दुनिया भी है? यदि है तो उनसे कैसे कनेक्ट किया जाए उस विषय पर यह सारा का सारा प्रोजेक्ट था जिसके लिए प्रोफेसर और उनकी टीम ने एक वाइजर को अंतरिक्ष में भेजने का बहुत बड़ा फैसला लिया था. और इस वाइज़र में बहुत सारी ऐसी चीजें सम्मिलित थी जो कि आने वाली मानव सभ्यता को विकास के एक नए चरण पर ले जा सकती थी।  



इस वाइजर में जो सारी चीजें  प्रोफेसर और उनकी टीम ने सम्मिलित की थी उनमें से एक मानव सभ्यता की बहुत सारी बातें जैसे कि हमारी  हिंदी भाषा, दूसरा मानव सभ्यता का डीएनए और उसको डिकोड करने का फार्मूला, मानव व्यवहार और उसको डिकोड करने का फार्मूला ।  

पृथ्वी पर रहने वाले मिक्रोब्स और उनका डीएनए फार्मूला ,हमारी दुनिया में जीवो का जीवन कैसे हैं और इसे कैसे जिया जाता है उसके बारे में इनफार्मेशन और उसको डिकोड करने का फार्मूला ,यह सारी सूचना प्रोफेसर उनकी टीम ने इस वाइज़र में सम्मिलित की थी ।  

ताकि इस वाइजर को वह अंतरिक्ष में दूर कहीं भेज सके और आने वाले समय में यह वाइजर किसी ऐसे अनजाने ग्रह या उपग्रह में जाकर लैंड करें और यदि उस ग्रह में जीवन है,यदि उसे ग्रह में लोग रहते हैं तो वह हमारी सभ्यता को समझे उस वाइज़र में सम्मिलित सभी सूचनाओं को एकत्रित करें और उन सब को समझने के बाद हमसे कनेक्ट कर सके यही प्रोफेसर और उनकी टीम का लक्ष्य था ।  

प्रोफेसर और उनकी टीम हमेशा और लगातार प्रयोगशाला में काम करते जा रही थी ।  और काम करते-करते सभी चीजों का ध्यान रखते हुए लगभग 1 साल से  ज्यादा का समय बीत गया और अब यह प्रोजेक्ट अपने अंतिम चरण में शामिल हो चुका था ।   सभी लोगों की निगाहें उस दिन पर टिकी हुई थी जिस दिन यह वाइजर श्री हरी कोटा रेंज से अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरेगा और अंततः वह दिन भी आ गया जिस दिन इस वाइजर को श्रीहरिकोटा रेंज से अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी शुरू हो चुकी थी ।  

आखिर लॉन्चिंग हो ही गयी 

सब लोग बड़े उत्साहित थे परंतु प्रोफेसर नेगी जी की धड़कनें मानो कुछ और ही कह रही थी ।   उनकी व्याकुलता से स्पष्ट था कि वह इस प्रोजेक्ट को लेकर कितने संजीदा थे और कितने भावुक भी थे. और इन्हीं चीजों के बारे में सोचते हुए कब रॉकेट लॉन्चिंग का समय आ गया और काउंटडाउन प्रारंभ हो गया पता ही नहीं चला।  काउंटडाउन शुरू हो गया 10.. 9.. 8.. 7.. 6.. 5.. 4.. 3.. 2.. 1.. और ये  बूम  . और इस प्रकार रॉकेट लॉन्च हो चुका था प्रोफेसर नेगी जी का सपना लिए यह वाइजर अब अंतरिक्ष की गहराई में जाकर समा चुका था ।  


वैज्ञानिक गणना के अनुसार अगले 20 से 30 सालों में यह वाइजर किसी न किसी ग्रह पर टकराकर उसे ग्रह के अंदर जाकर वहां की जानकारियां एकत्रित कर सकता था यह एक वैज्ञानिक अवधारणा थी।   हालांकि प्रोफेसर नेगी  कोई यह विदित था कि हो सकता है कि जब तक यह वाइजर किसी और ग्रह और  उसके लोगों तक पहुंचे, हो सकता है तब तक वह जीवित न रहें परंतु फिर भी एक आश  में की दूसरी दुनिया के लोगों से हम लोग कनेक्ट हो सकते हैं और  हमारी  आने  वाली  पीडियां  इस  बात  को  समझ  सके।  बस इसी पर उनका ध्यान था। 

और अगले ही पल प्रयोगशाला के मॉनिटर पर रॉकेट की सफलता पूरक लॉन्चिंग होने की सूचना मिल चुकी थी। और अंतरिक्ष में वाइजर एक सीमित गति के अंतर्गत अंतरिक्ष की गहराइयों को चीरते हुए आगे बढ़ रहा था। बस अब था तो केवल अगले 20-30 सालों का इंतजार।  समय बीतता रहा।  प्रोफेसर और उनकी टीम ने इस प्रोजेक्ट के अलावा कई  और अन्य छोटे-मोटे प्रोजेक्ट से  भारत का नाम विश्व पटल पर ऊंचा किया था।  

इसे भी पढ़ें -बुढ़िया की घाटी:आज़ादी से पहले की गाथा

उल्का पिंड का टकराव 

प्रोफेसर नेगी  हमेशा अपनी प्रयोगशाला में बैठकर अपने भेजे हुए वाइजर से आने वाले सिग्नल्स का इंतजार करते रहते थे।  बीच-बीच में अंतरिक्ष में जब वाइजर किसी ग्रह के नजदीक से गुजरता  था या किसी उल्का पिंड के नजदीक से गुजरता था तो उल्का पिंड और वाइजर के बीच एक आकर्षण / प्रतिकर्षण बल लगता था जिसकी  वजह से जो ध्वनि उत्पन्न होती थी।



वह पृथ्वी पर बैठे प्रोफेसर एवं टीम को सुनाई देती थी और उन्हें लगता था कि उनका वाइजर किसी उपग्रह पर या किसी ग्रह पर लैंड कर चुका है और वहां के लोग अब उनके इस मैसेज को पड़ेंगे परंतु अगले ही पल उन्हें निराशा हाथ लगती थी क्योंकि यह आवाज सिर्फ और सिर्फ उल्का पिंड के वाइजर के बगल से गुजरने की थी। 

और इस तरह समय बीतता रहा।  सन 1995 कब गुजर गया और सन 2025 कब लगा इसका पता भी नहीं चला. प्रोफेसर नेगी अब काफी वृद्ध हो चले थे। आंखों से भी कम दिखाई देता था।  परंतु काम करने की लगन और आंखों में बसा हुआ आज से करीब 20 से 30 साल पहले का सपना आज भी उसी तरह से मजबूत और जीवंत था। 

तो आपको लिए चलते हैं 1995 में वापस. अंतरिक्ष में छोड़ा गया वाइजर आज भी अपनी एक सीमित गति के अंतर्गत आगे बढ़ रहा है. आगे बढ़ता हुआ और अंतरिक्ष गहराई में न जाने कहां पहुंच गया. वाइजर को अंतरिक्ष में गति करते हुए लगभग 22 साल हो चुके थे.

पृथ्वी  के  अनुसार  अब यह सन 2017 था , परन्तु  वास्तव  में  पृथ्वी  पर  सं  2025 नहीं  अपितु  सं  2055 चल  रहा  था। (पृथ्वी कि तुलना में अंतरिक्ष का समय न्यूनतम है)।   वाइजर अपनी अधिकतम गति से अंतरिक्ष में आज भी विचरण कर रहा है और इन 22 सालों में उसके आसपास से न जाने कितने ही  उल्का पिंड गुजरे जो कि पृथ्वी पर बैठे हुए वैज्ञानिकों की टीम को किसी अनजान सिग्नल का संकेत देता था परंतु उनके हाथ में निराशा ही लगती थी.

और जब वायेजर एक ग्रह पर लैंड हुआ  

किसी पल में वाइजर अपनी गति से आगे बढ़ रहा है और उसके ठीक सामने सीधी रेखा में एक ग्रह पड़ रहा है जो भी काफी शीतल नजर आ रहा है। वाइजर उसकी गुरुत्वाकर्षण की सीमा में जैसे ही पहुंचा वैसे ही उस ग्रह के गुरुत्वाकर्षण बल ने उसे अपने केंद्र कि और खींचना  प्रारंभ कर दिया और लगभग ढाई हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से वाइजर उस ग्रह की ओर गिरने लगा और अगले कुछ क्षण बाद ही वाइजर धड़ाम से उसे ग्रह के सतह पर जा गिरा.



परंतु यह पृथ्वी पर बैठे हुए सभी वैज्ञानिकों  की मेहनत का परिणाम था कि उन्होंने इस वाइज़र का इस ढंग से इसका निर्माण किया गया था कि यदि यह 5000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से सीधे किसी ठोस चट्टान पर भी गिरे तो भी इसको कुछ नुकसान नहीं होगा और नहीं इसके  सोलर पैनल्स को। अतः  वायजर  सुरक्षित एक अनजान ग्रह में लैंड कर गया था.

इसे भी पढ़ें -क्या वास्तव में भूत-प्रेत होते हैं ?

यहां पृथ्वी पर सन 2055 है और ईश्वर की कृपा देखिए प्रोफेसर नेगी आज भी स्वस्थ हैं परंतु बहुत वृद्ध हो चुके हैं और लगभग 100 साल के आस पास उनकी उम्र हो चुकी है। कंपकपाँते शरीर के साथ वह आज भी लैब में नए वैज्ञानिकों के साथ बैठे हैं और सिग्नल्स की प्रतीक्षा कर रहे हैं.  हालांकि प्रोफेसर का रिटायरमेंट बहुत पहले हो चुका था लेकिन अपने कार्य के प्रति जो उनका जुनून था वह उनको रोक न सका।  और इसी वजह से वह आज भी लैब में बैठे हुए अपने भेजे हुए वाइजर से कोई मैसेज आए इसका इंतजार कर रहे हैं। 

जब अंतरिक्ष से सिग्नल्स आने लगे 

अचानक बीप... बीप.... बीप... की आवाज़ से सुनसान लैब चहक उठा।  मॉनिटर में किसी अनजान ग्रह से अजीब से टेढ़े -मेढ़े सिग्नल प्राप्त हो रहे थे।  प्रोफेसर नेगी अपनी कंपकपाती और तेज आवाज़ में चिल्ला उठे।  आ गया..आ गया...  आ गया.. मेरे....वायजर....ने सन्देश... भेजा है....  ...मेरे... वायजर.... ने सन्देश..... भेजा है....इसी उत्तेजना में वे व्हीलचेयर से गिर गए पर उन्हें इसकी परवाह नहीं थी ,

उन्होंने उठने की कोशिश की तो सहायक ने उनकी सहायता की और जैसे ही वे उठे लपक कर मॉनिटर की और भागे और उसे अपलक देखते रहे।  उनकी आँखों से अश्रु धारा बह रही थी।  और वे कह रहे थे  मेरे... वाइज़र ने... मेरे मरने से... पहले मेरी इच्छा .....पूरी कर दी...  मेरी इच्छा पूरी कर दी....उन्होंने आग्रह किया इन सिग्नल्स को डिकोड करने की तैयारी करो .  उनकी सारी टीम मिलकर उसे संदेश को डिकोड करने में लग गए. 7 दिन की अथक मेहनत के बाद जब वह संदेश डिकोड हुआ तो सब की आंखें खुली की खुली रह गई. 

उस मैसेज में किसी अनजान ग्रह से और अनजान लोगों का एक संदेश आया था कि आपका संदेश हमें मिला हालांकि इस संदेश में जिन भी सूचनाओं के बारे में आपने विवरण दिया है हम उसे समझने की कोशिश कर रहे हैं परंतु हमें भी उसको पूर्ण रूप से समझने में समय लगेगा अतः आप इंतजार करें. 

धन्यवाद 

D.K-Outer Astral Galaxy

इस मैसेज को पढ़ कर प्रोफेसर नेगी  मानो उछल पड़े।  उम्र के इस पड़ाव में भी उनका जोश देखते ही बनता था।  लैब में उपस्थित सभी वैज्ञानिक हैरान और खुश भी थे।  खुश इसलिए थे कि उनका मकसद आज पूर्ण होने वाला है और हैरान इसलिए थे कि हमारी इस पृथ्वी को छोड़कर भी अन्यत्र एक ऐसा ग्रह है जहां पर अपने जैसे ही लोग रहते हैं और वे लोग हमारे बारे में सोच रहे हैं, हमारा सन्देश पढ़ रहे हैं और हमसे संपर्क करने का प्रयत्न कर रहे हैं . प्रोफेसर नेगी जी का तो मानो खुशी का ठिकाना नहीं था वह उसे संदेश को बार-बार पढ़े जा रहे थे.

इसे भी पढ़ें -नई पीढ़ी का चरित्र निर्माण कैसे किया जाय ?

उन्हें यह साफ़ नजर आ रहा था कि उस सभ्यता के लोगों का सन्देश देने का तरीका हम पृथ्वी वासियों जैसा ही है और यह सोच-सोच कर प्रोफेसर नेगी बहुत खुश हो रहे थे और पूरी  टीम को भी उन्होंने इस बात से अवगत कराया। सच में पूरी टीम भी हैरान थी।  अब सबको यह जानना था कि जो ये D.K-Outer Astral Galaxy है यह उनके ग्रह का नाम है या उनके किसी अंतरिक्ष स्टेशन का नाम बस यह पता चल जाय तो और राज से पर्दा उठ सकता है। 

आखिर क्या सन्देश दिया था दूसरे ग्रहवासियों ने ?

तीन दिन बाद प्रोफेसर नेगी के मॉनिटर में उसी जगह से दुबारा सन्देश आया और इस बार जो सन्देश आया उसको पढ़कर प्रयोगशाला में उपस्थित सभी लोग रो पड़े।  उस अनजान ग्रह के वासियों ने हमारी सूचनाओं को डिकोड कर उसका उत्तर भेजा था।  सब हैरान थे कि उनकी टेक्नोलॉजी हमसे कितनी सुपरफास्ट है मात्र तीन दिन में ही उन्होंने हमारी लगभग सैकड़ों सूचनाओं को डिकोड कर लिया और उसका उत्तर भी दे दिया। 

उनका उत्तर था - पृथ्वीवासियों को हम (जेफायरा-Zephyra ) वासियों का सलाम।  हमें आश्चर्य है कि जेफायरा जैसा एक अन्य ग्रह भी इस ब्रह्माण्ड में उपस्थित है और उसका नाम पृथ्वी है।  आपने पृथ्वी की जो तस्वीर भेजी है वह हमारे ज़ेफायरा से काफी मिलती जुलती है। ऐसा लगता है जैसे पृथ्वी, ज़ेफायरा का जुड़वां भाई हो।  आपको भेजे गए सिग्नल्स की गणना अनुसार हम लोग पृथ्वी से लगभग 2.5 करोड़ प्रकाशवर्ष दूर हैं और हमें आश्चर्य है कि आपका यह अंतरिक्षयान इतनी दूर हम तक कैसे पहुंचा ? आपकी वैज्ञानिक तकनीकी को हमारा सलाम। जब हम यह सन्देश-सिग्नल आप तक प्रेषित करेंगे तो इसको आप तक पहुंचने में लगभग तीन दिन लगेंगे। 

प्रोफेसर नेगी एवं उनकी पूरी टीम हैरान थी कि इसका मतलब ये है कि उन्होंने हमारे सन्देश को तीन दिन पहले ही डिकोड कर लिया था।  वाह क्या उन्नत टेक्नोलॉजी है और विनम्रता देखो, पृथ्वीवासियों की टेक्नोलॉजी को सलाम कर रहे हैं।  वह सभ्यता अवश्य ही मानव सभ्यता से कहीं आगे ही होगी। टीम फिर से उनके द्वारा भेजे गए संदेश को आगे पढ़ने लगी .

आपने जो भी सन्देश हमें भेजा है हमने सभी को डिकोड किया है और यह जानकर अति प्रसन्नता होती है कि आप पृथ्वी वासियों की सभ्यता हम ज़ेफायरवासियों से काफी हद तक मिलती है। डीएनए विश्लेषण से पता चलता है कि मानव एक उत्तम किस्म का जैविक प्राणी है जो बहुत सारी शारीरिक,बैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक सिग्नल्स से बना हुआ है। 


आप ईश्वर में विश्वाश करते हैं बिक्लुल ज़ेफायरा वासियों की  तरह।  आपकी तरह हमारा भी एक सुप्रीम पावर है जो हमें नियंत्रित करता है।  आपकी भाषा हमसे बिलकुल अलग है। परन्तु शैली में हमसे उन्नत है। 

आपकी पृथ्वी पर जीवन जीने के लिए प्राण वायु कि आवश्यकता पड़ती है वही यहां हमें भी पड़ती है।  हम लोगो की शरीर संरचना आप लोगो जैसी नहीं है परन्तु , हार्मोनल ,इलेक्ट्रिकल एवं परिसंचरण संरचना बिलकुल एक जैसी है और यह शायद ज़ेफायरा एवं पृथ्वी के लगभग एक जैसे होने के कारण है।  हम बहुत जल्दी ही आप लोगो से अपनी अन्य सूचनाएं साझा करेंगे। 

जूनियर वैज्ञानिक मानो ख़ुशी से पागल हो गए थे। वे कह रहे थे - प्रोफेसर आपका इतने सालों का सपना आज सच हुआ , हम दूसरी दुनिया के लोगो से बातें कर रहे हैं और सबसे बड़ी बात वो लगभग हमारे जैसे ही हैं।  अब वो दिन दूर नहीं जब हम ज़ेफायरा में प्रवेश करेंगे और उनसे अपनी अन्य सभ्यताओं को साझा करेंगे।  है न प्रोफेसर ? 

यह कहते हुए जूनियर असिस्टेंट प्रोफेसर की तरफ मुड़ा।  परन्तु यह क्या प्रोफेसर की आँखों में आंसू थे और इशारे से जूनियर को अपनी तरफ आने का इशारा किया।  जूनियर असिस्टेंट , प्रोफ़ेसर नेगी के पास गया तो प्रोफेसर ने धीरे से उसके कान में कहा " ये सफर रुकना नहीं चाहिए" 

"जो तुम अभी कह रहे थे उसे पूरा अवश्य करना।"  "बोलो करोगे न ?"  हाँ क्यों नहीं प्रोफेसर ? आपके मार्गदर्शन में हम सब कुछ हासिल कर सक........  परन्तु प्रोफेसर उसकी ये बात सुनने के लिए अब इस दुनिया में नहीं थे।  उनकी दोनों आखें खुली हुई थी परन्तु अधरों पर एक विजयी मुस्कान अभी भी थी जो  मानों कह रही थी कि " मेरे साथियों !! मैंने अपना काम किया और सफल रहा अब आगे आपका सफर जारी रहना चाहिए .

कहानी का सार -

इस काल्पनिक कहानी का सार यह है कि हमारी मानव सभ्यता उत्तम होने के बावजूद भी कहीं न कहीं पिछड़ रही है।  शायद हम इंसान अपनी मानव सभ्यता का मूल्य नहीं समझ पा रहे हैं।  ईश्वर सर्वव्यापी  है और सब जगह है हमको यह मानना होगा।  विज्ञान की प्रगति में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उस विज्ञान को भी बनाने वाला वही सुप्रीम पावर "ईश्वर" है।  आपको यह कहानी कैसी लगी अवश्य लिखियेगा 


इसे भी पढ़ें -क्या होती है सच्ची भक्ति?


मेरी कहानियां

मैं एक बहुत ही साधारण किस्म का लेखक हूँ जो अपनी अंतरात्मा से निकली हुई आवाज़ को शब्दों के माध्यम से आप तक पहुँचाता हूँ

1 टिप्पणियाँ

आपके इस कमेंट के लिए बहुत बहुत साधुवाद

और नया पुराने