देवता आना : एक सच्चाई या अंधविश्वास ?


देवी-देवता आना - क्या एक सच्चाई है ?
मेरा आज का यह ब्लॉग पढ़कर कुछ तथा-कथित पढ़े-लिखे लोग मुझ पढ़े लिखे इंसान को या तो पागल कहेंगे या तो पूर्ण रूप से अंधविश्वासी. परंतु आजका  यह ब्लॉग  इस विषय पर आधारित नहीं है कि कौन मुझे क्या कहता है ? और मेरे बारे में क्या सोचता है? आज का यह ब्लॉग उत्तराखंड की परंपरा ,सभ्यता एवं संस्कृति से सम्बंधित है।  देवभूमि उत्तराखंड में जो देवी-देवता अवतरित होते हैं , उस संस्कृति एवं परम्परा के सम्बन्ध में है।

देवी-देवताओं के अवतरण या शरीर में प्रवेश करने के सम्बन्ध में हम इंसानों का और विशेष कर पढ़े-लिखे लोगों का क्या मत होता है।  इसी विषय पर आज का या ब्लॉग आप लोगो के समक्ष लाया हूँ।  आज का ब्लॉग भी अन्य  ब्लॉग की भांति मेरी स्वयं की एक सच्ची घटना पर आधारित है।  तो पाठकों से अनुरोध है कि कृपया इस ब्लॉग को मात्र पढ़ने की नजर से ही देखा जाए ना कि किसी निर्णायक मोड़ पर पहुंचने का रास्ता। 

तो चलिए शुरू करते हैं आज के ब्लॉग को - आज का ब्लॉग मेरा उत्तराखंड- देवभूमि की  एक प्राचीन परंपरा पर आधारित है और जिस परंपरा को वहां की स्थानीय भाषा में "जागर" कहा जाता है. जागर में अलग-अलग परिवारों के अलग-अलग देवी-देवताओं की एक विशेष पूजा पद्धति और वाद्य यंत्रों  द्वारा आह्वाहन किया जाता है और इसे परिपूर्ण किया जाता है. देवी-देवताओं का आह्वाहन मानव शरीर में किया जाता है। 


वाद्य यंत्रों ,मन्त्रों और कुछ विशेष प्रकार की भाषा शैली से देवी- देवताओं को उस परिवार के कुछ चुनिंदा लोगों पर ही अवतरित किया जाता है।  और ऐसा नहीं है कि ये देवी-देवता किसी पर भी आ जाएँ।  जिस इंसान को देवी अथवा देवता सुयोग्य एवं सक्षम समझता हो उसी इंसान पर वह अवतरित होता है। वाद्य यंत्र को जो इंसान बजाता है या ऑपरेट करता है उसे अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नाम से सम्बोधित करते हैं। कहीं पर इन्हे धामी, कहीं पर धोनस्यां, तो कहीं पर गुरुजी आदि नामों से पुकारा जाता है। 

तो आज का जो यह ब्लॉग  देवता का अवतरित होना एवं मेरे अपने खुद के परिवार के बारे में है।  तो चलिए मैं आपको एक संक्षिप्त सा विवरण देता हूं।  मैं उत्तराखंड के चमोली गढ़वाल का रहने वाला हूं।  मेरे माता-पिता एवं सम्पूर्ण परिवार एक संपूर्ण ग्रामीण परिवेश से निकला है। वर्तमान समय में, मैं  दिल्ली जैसे महानगर में नौकरी करता हूं। 

हमारा कुल देवता कौन ?
जैसा कि मैं आपको पहले भी बता चुका हूँ कि हर एक परिवार का अपना-अपना देवी या देवता होता है। तो हमारे परिवार का कुल देवता नाग एवं  सिध्वा हैं।  जिसे आम बोलचाल भाषा में नाग- सिध्वा बोलते हैं।  नाग, से आप लोग समझ ही गए होंगे कि कैसे होंगे।  सिध्वा बाबा नाथ संप्रदाय का निर्वहन करने वाले सभी संतों जैसे भैरवनाथ, बालक नाथ, बटुकनाथ , गोरखनाथ आदि की अग्रिम पीढ़ी है।  सिध्वा बाबा अपने आप में एक सिद्ध तांत्रिक हैं  जो कि आम जनमानस के लोक कल्याण हेतु तपस्या करते हैं और अपनी शक्तियों का उपयोग जनकल्याण में ही करते है।  नारी सम्मान की रक्षा करना  उनका परम कर्त्तव्य है और वो भगवान् भोले शंकर  जी की पूजा करते हैं।  

लोक कथाओं में वर्णित इतिहास के अनुसार सिध्वा बाबा एक बहुत ही पराक्रमी एवं प्रचण्ड तांत्रिक और जनकल्याण करने वाले एक साधु हैं। जो प्रायः गेरुवा वस्त्र पहने हुए, लम्बी जटाएं लिए हुए ,एक हाथ में चिमटा, दूसरे हाथ में काँटों वाला एक दण्ड लिए हुए ,गले और कमर में रुद्राक्ष की मालाएं पहने हुए और तन पर भस्म रमाये हुए रहते हैं।  इनकी हुंकार मात्र से ही भूत-प्रेत पिशाच आदि थर-थर कांपने लगते हैं क्योंकि बाबा इन सब का बहुत बुरा हाल कर देते हैं। 

जहां श्री राम भक्त हनुमान जी को स्मरण करते ही भूत प्रेत उनको देखकर डर से भाग जाते हैं , वहीं सिध्वा बाबा का नाम सुनते ही भूत-प्रेतों की  जान पर बनती है, क्योंकि सिध्वा बाबा इन सबको वश में कर इनसे सेवा करवाते हैं जो की यह निशाचर, नकारात्मक शक्तियां कदापि नहीं चाहती है।  पीढ़ी दर पीढियों से हमारे यह कुल देवता हमारे घर के सदस्यों पर ही आते रहे हैं और अब तक यह मेरे पिताजी के ऊपर आते रहे हैं। 

विचारणीय विषय यह है कि पिताजी तक नाग एवं सिध्वा दोनों देवता पिताजी पर ही अवतरित होते रहे हैं परंतु पिछले कई वर्षों से , एक तो उम्र के चलते हुए और दूसरा पिताजी के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए स्वयं पिताजी ने अपने कुल देवताओं से आग्रह किया कि और आगे वे नाग एवं सिध्वा के अवतरण के लिए उपयोगी नहीं हैं ।  क्योंकि अब उनका स्वास्थ्य सही नहीं रहता है।  अतः "मैं अब नाच नहीं पाऊंगा इसलिए आगे से आप दोनों देवता मेरे दोनों बेटों (अर्थात एक मैं और एक मेरा छोटा भाई) दोनों पर आ सकते हैं"।  

मैं इन बातों को नहीं मानता 
मुझे तो पक्का यकीन था कि मुझ पर ऐसा कुछ भी नहीं आने वाला क्योंकि मैं इस तरह की चीजों पर इतनी आसानी से विश्वास नहीं कर पाता हूं। और आज तो बात स्वयं हमारे कुल देवता की मुझ पर अवतरित होने वाले के विषय में था।  मेरा भाई भी ऐसा ही है वह भी इन चीजों पर इतनी आसानी से विश्वास नहीं कर पाता है।  विशेष कर मैं , विज्ञान वर्ग से पढ़ा हुआ विद्यार्थी हूं तो मेरा विश्वास करना तो वैसे भी नहीं बनता है। अब परंतु परिवार के परंपरा वाली बात थी, तो बड़े बुजुर्गों के कहे अनुसार  मैं वहां पर बैठ गया।  और मेरा भाई भी मेरे साथ बैठ गया। मुझ पर और मेरे भाई पर नाग एवं सिध्वा को अवतरित करने कि तैयारियां होने लगी थी। 


उसके बाद जो गुरुजी थे उन्होंने अपने मन्त्रों का उच्चारण और उस वाद्य यंत्र को बजाना प्रारंभ किया। मैं चुपचाप उनके मन्त्रों को सुनने की कोशिश करने लगा और कभी दाएं कभी बाएं देखता और कभी छोटे से बच्चों को देखकर मुस्कुराना शुरू देता।  परन्तु मन ही मन में सोच भी रहा था कि यदि ऐसा कुछ होगा तो क्या मैं इतने सारे लोगों की भीड़ में, इस आँगन में सबके सामने नाच पाऊंगा ? क्यूंकि मैं स्वभाव से नाचने में बेहद शर्मीला हूँ।

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उस दौरान मेरे दिमाग में एक ही बात चल रही थी कि यह जो भी देवता हैं हमारे नाग या सिध्वा, मुझ पर तो कम से कम नहीं आने वाले क्योंकि मैं इन चीजों को मानता भी नहीं हूं। और मुझे तो यही लगता था कि मैं तो विज्ञान वर्ग का पढ़ा -लिखा हूँ और यह चीज शायद मुझ पर काम नहीं करेगी।  इसलिए मैं पूर्ण रूप से आस्वस्त था कि यह देवता वगैरह मुझ पर नहीं आएंगे। और यही सोचते हुए मैं उन गुरु जी के मन्त्रों को सुनने की कोशिश करता रहा।  यद्यपि उनके वह मंत्र मेरी समझ से परे थे और उनकी वह भाषा भी ।  कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।  हां पर यह जरूर था कि वहां पर बैठे-बैठे मेरा टाइम पास अवश्य हो रहा था।  

आखिर ये मेरे साथ क्या हुआ ?
कुछ देर बाद मेरे दिमाग में एक अजीब सी हलचल पैदा हुई । मैंने महसूस किया कि मेरे पांव के तलुवों से प्रारंभ होकर और ऊपर की तरफ जैसे कोई गर्म द्रव या चीज बह रही हो।  मैं एकदम से सचेत हुआ और सोचने लगा कि यह मेरे साथ क्या हो रहा है?  वह जो गर्मी मेरे पांव से ऊपर की तरफ बह रही थी वह धीरे-धीरे मेरे पेट, छाती और मेरे मस्तिष्क तक ऊपर तक बहने लगी। 

और इसी दौरान जब वह गर्मी या वह गर्म खून क्या कुछ भी कहें जब वह ऊपर की ओर बड़ा था उस वक्त मेरा दिमाग यह सोचने पर लग गया था कि यह कौन सी ऐसी प्रति-क्रिया मेरे शरीर में हो रही है जिससे कि मेरा ब्लड फ्लो ऊपर की तरफ बढ़ रहा है।  मेरा कहने का मतलब यह है कि उस वक्त मैं यह सोचने लगा कि यह जो ब्लड फ्लो (रक्त-प्रवाह) है यह नीचे से ऊपर इतनी तेज से क्यों बह रहा है ? क्योंकि सामान्यतः पूरे शरीर में ब्लड फ्लो तो होता ही है और नॉर्मल तरीके से होता है परंतु यह ब्लड फ्लो कुछ अजीब सा था। 

यह ब्लड फ्लो कुछ तेज था और साथ में कुछ गर्मी लिए हुए भी था और इसकी वजह से मेरा पूरा बदन गर्म हो गया था।  और इससे पहले कि मैं किसी निर्णय पर पहुंचता मेरा सर घूमने लगा। मुझे ऐसा महसूस होने लगा कि शायद मैं अब बेहोश होने वाला हूं (जिसे अचेत अवस्था कहते हैं) और एक क्षण ऐसा भी आया कि उस अचेत अवस्था एवं जो चेतन अवस्था के बीच में जो गैप था उस गैप में , मैं मात्र उस वाद्य यंत्र की आवाज को सुन पा रहा था और साथ ही साथ उनके मन्त्रों को सुनने की कोशिश भी कर रहा था कि आखिर गुरूजी बोल क्या रहे हैं ?

दिमाग तो मेरा अभी भी बहुत तेजी से कम कर रहा था कि आखिर मेरे साथ हो क्या रहा है ? परंतु इससे पहले कि मैं किसी निर्णय पर पहुंचता, मुझ पर अचेतन अवस्था छाने लगी और मेरा पूरा शरीर कांपने लगा।  ऐसे कांपने लगा कि जैसे  मोबाइल वाइब्रेट (कम्पित) होता है।  मोबाइल की तरह मेरा पूरा शरीर कांपने लगा और एक जोरदार अट्हास एवं गर्जना के साथ मैं उठ खड़ा हुआ और गुरु जी के चरणों में जा गिरा। यहां तक मुझे धुंधला सा याद था । 

और उसके कुछ 15 सेकंड तक मुझे याद नहीं कि मैंने क्या किया ? यकीन मानिए जब 15-20 सेकंड बाद चेतन अवस्था में आया तो मैंने महसूस किया कि मैं बहुत जोर जोर से नाचा था और मेरा पूरा शरीर पसीने से तर-बतर था। मेरे शरीर पर कुछ निशान (छाप ) थे जो कि मैंने (सिध्वा बाबा ने) एक लोहे के चाबुक से मैंने अपने बदन पर बहुत जोरों का प्रहार किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार चाबुक से जो यह चोट लगती है ये सिध्वा बाबा अपने-आप पर मारते हैं। 

मुझे समझ में ही नहीं आया कि ये कैसे हुआ ?
क्यूंकि उन पर भस्म वगैरह लगने से  शरीर में खुजली होती है तो उस खुजली को मिटाने के लिए वह पीछे ऐसे चाबुक से स्वयं को मारते हैं। वह चाबुक जो है पूरा लोहखंड का बना होता है और उसके आगे की ओर पैने -पैने छोटे-छोटे चाकू होते हैं जो की शरीर को छलनी करने के लिए पर्याप्त हैं। परन्तु पूजा उपरान्त जब मैंने अपनी पीठ को शीशे में देखा तो मुझ पर कहीं भी कोई घाव का निशान और न हीं कोई दर्द था।  मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतने जोरों से चाबुक मारने के बाद भी मेरे बदन पर कोई गहरा घाव तक नहीं है और दूसरा मुझे कुछ भी पीड़ा महसूस नहीं हो रही थी। आखिर ये कैसे संभव है ?  (वीडियो में साफ़ -साफ़ दिखाई दे रहा था कि मैं स्वयं के नग्न बदन पर उस चाबुक से बहुत जोरो से प्रहार कर रहा था )। 


जब एक हल्की सी सूई भी अगर चुभ जाए तो उसकी कुछ देर तक पीड़ा रहती है ,लेकिन इतने बड़े लोहे के चाबुक से कुछ भी नहीं हुआ ? वह चाबुक भी कोई सिंगल चाबुक नहीं था।  उस चाबुक के अगले हिस्से में कम से कम 5 से 6 लोहखंड की धाराएं थी और हर एक धारा पर शार्प छोटे-छोटे चाक़ू। जिनकी वजह से गहरा घाव अथवा कट लग सकता था। लेकिन मेरी पीठ पर पर तो चीरा या गहरा घाव तो दूर की बात,सिवाय चाबुक की छाप के अतरिक्त कुछ नहीं था और वे छाप भी पीड़ा-रहित थे। 

और दूसरी तरफ मेरे छोटे भाई को बैठाया गया था ,उस पर नाग देवता को अवतरित होना था।  बहुत सारी कोशिशें की गई, वाद्य यंत्र बजाये गए, मंत्र बोले गए परंतु उस पर नाग देवता अवतरित नहीं हुए। अपितु उसकी वाइफ पर अवतरित हो गए जो कि बीच भीड़ में महिलाओं के साथ बैठकर ,कार्यक्रम को देख रही थी,वहां से उठकर वह सामने आई और मंच पर लोट-पोट (जिस तरह से नाग लोट-पोट होता है ) होकर नाचने लगी। 

यह भी मेरे लिए एक आश्चर्य की बात थी कि जिस पर नाग देवता को अवतरित होना था उस पर न होकर वह उनकी पत्नी पर अवतरित हुए और वह नाचने लगे। उसके बाद से ही हर साल नाग देवता छोटे भाई की पत्नी पर और सिध्वा बाबा मुझ पर अवतरित होने लगे। 


यह पढ़कर कुछ पाठकगण इसे मेरी अंध-विश्वास की पराकाष्ठा कहेंगे पर सच मानिये , अंधविश्वास क्या होता है ?मुझे भी आप ही की तरह  पता है और मैं भी उसे सपोर्ट नहीं करता पर यहां पर विश्वास और अंधविश्वास से ही परे कुछ था जो शायद मेरी समझ में नहीं आ रहा था। और आप होते तो आपकी हालत भी मेरे ही जैसी होती। 

दोस्तों यह सब यहां पर लिखने और बताने का उद्देश्य मेरा इतना ही है कि विश्वास और अंधविश्वास के बीच में एक छोटा सा गैप (रिक्त स्थान) होता है उस गैप को पहचानने भर की देरी है। आप लोगों की तरह मैं भी अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देता हूं और मैं भी इस पर विश्वास नहीं करता हूं परंतु जब आपके साथ व्यक्तिगत रूप से कुछ ऐसी घटनाएं घट जाती है जहां पर आप अंधविश्वास को दर -किनार कर देते हो और विश्वास की कड़ी को पकड़ लेते हो। 

क्योंकि आप वहां पर विवश हो जाते हो यह मानने के लिए कि "कुछ तो है " चाहे आप कितने भी पढ़े-लिखे क्यों नहीं है। आपकी जानकारी के लिए मैं बता दूं कि आपकी ही तरह मैं भी स्वयं मास्टर ऑफ साइंस एवं मास्टर आफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन से पोस्ट ग्रेजुएट हूं। और शायद इसी के चलते मैं इन चीजों पर विश्वास नहीं करता था। परंतु जब घटना मेरे साथ घटी तो मैं विवश था कि यह अंधविश्वास नहीं है। 

यह विश्वास और अंधविश्वास से भी बढ़कर कोई ऐसी चीज है जिसको हम परिभाषित नहीं कर सकते हैं। उसको हम विश्वास या अंधविश्वास जैसे छोटे शब्द देकर परिभाषित नहीं कर सकते हैं। यह शायद इससे भी ऊपर बढ़कर कोई चीज है जिसकी परिभाषा हम इंसान नहीं दे सकते हैं। वह कहते हैं ना कि बिना चोट खाये दर्द का एहसास नहीं होता है। दर्द सहने के लिए आपको चोट खानी ही होगी। तो वही बात है इन चीजों पर पहले में विश्वास नहीं करता था लेकिन जब घटना मेरे साथ घटी तो ऐसा कोई भी कारण नहीं था जिसके चलते में इसे अंधविश्वास कह सकूं। 

विज्ञान और अध्यात्म क्या दोनों एक ही सिक्के के पहलू हैं ?
अगर यह चीज नहीं होती तो मुझ जैसे साइंस को मानने वाले इंसान के अंदर यह चीज कदापि नहीं होती और मैं कभी भी इस चीज को महसूस नहीं करता।  क्योंकि बचपन से मैं इस चीज को इसी एंगल से देखते हुए  आया  हूँ ।जब कभी भी मेरे पिताजी या किन्ही अन्य लोगों पर इस तरह के देवता आते थे तो मैं इस चीज को साइंस के एंगल से देखने की कोशिश करता था कि हो न हो इसमें कोई न कोई साइंस का एंगल होगा। जिसको लोग जानते नहीं और बस अंधविश्वास के नाम पर इसको अपना लेते हैं।  और वहाँ पर नाचने कि एक्टिंग करते हैं। 

परंतु स्वयं जब मैंने अपने शरीर पर इस चीज को महसूस किया तब  मुझे विश्वास करने के लिए विवश होना पड़ा। दोस्तों मैं यह नहीं कहता हूं कि आप अंधविश्वासी बनिए या किसी भी पाखंड में संलिप्त हों परंतु जो परंपरागत पीढ़ी दर पीढ़ी चली आने वाली हमारी सभ्यताएं हैं, हमारी संस्कृति है, हमारे देवी देवता हैं, इन पर आपको विश्वास करना चाहिए।


हां यदि कोई आपको नींबू को हवा में उड़ाकर, एक पर्ची पर आपके मन की बात लिखकर कहता है कि मैं बाबा हूं मैंने यह कर दिया, मैंने वह कर दिया , मैं चमत्कारी हूं, तो बेशक मेरी नजर में यह एक पाखंड ही है एक फ्रॉड ही है।  क्योंकि चमत्कार करने वाला या जन-कल्याण करने वाला कभी भी इस तरह के दिखावे नहीं करता है। उसका उद्देश्य मात्र एवं मात्र जनकल्याण करना ही होता है ना की जनकल्याण करने की विधि को सार्वभौमिक करना होता है। अतः यह आप पर निर्भर करता है की विश्वास और अंधविश्वास की जो बीच का जो गैप है उसको आप किस एंगल से समझने की कोशिश करते हैं।  

मैं, इन परंपरागत पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली जो सभ्यताएं हैं, पूजन विधियां हैं, देवी देवता हैं, मैं इनको पूर्ण रूप से मानता हूं। और हां जो लोग पाखंड के नाम पर इनका दुरुपयोग करते हैं उनका मैं पूर्ण बहिष्कार करता हूं। तो दोस्तों यह मेरी एक कहानी थी, एक मेरा अनुभव था जिसे मैं आप लोगों के साथ साझा करना चाहता था। और मैं चाहता हूं कि आप इस अंतर को समझें।  मैं तो समझ गया और मैं पूर्ण रूप से इस चीज से सहमत हूं कि देवी देवताओं का आना एक सच्चाई है, अंधविश्वास नहीं है। 

एक देवता अलग-अलग लोगो पर कैसे आ सकतें  है ?
और एक दूसरी बहुत ही महत्वपूर्ण बात जो मैं आप लोगों के साथ शेयर करना चाहता हूं, वह यह है कि एक समय में एक देवता दो जगह या चार जगह कैसे अवतरित हो सकता है? यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है और यह अक्सर लोग पूछा करते हैं।  उदाहरण के लिए अगर किसी पर हनुमान जी अवतरित होते हैं। और एक ही दिन एक ही समय पर, एक ही हनुमान जी दो लोगों या चार लोगों पर कैसे अवतरित हो सकते हैं ? 

इस तरह के प्रश्न अक्षर पूछे जाते हैं।  एक देवता एक ही समय पर एक ही आदमी पर आएगा चार आदमियों पर नहीं आ सकता है।  इसका अर्थ यह अंधविश्वास है आडंबर है दिखावा है।  परंतु दोस्तों ऐसा नहीं होता है। इतने सालों में अपने कुल देवता के स्वरूप में नाचने के पश्चात मुझे इतना ज्ञान जरूर हुआ है की कभी भी एक देवता पूर्ण रूप से किसी भी इंसान पर अवतरित नहीं हो सकता है। उस अमुक देवता का मात्र एक धूल के कण के अंश के बराबर शक्ति आप में प्रवेश करती है। और वह उस देवता के रूप में नाचना शुरू कर देती है। 

उदाहरण के लिए यदि हनुमान जी किसी पर अवतरित हो रहे हैं तो इसका अर्थ कदापि यह नहीं है कि पूर्ण हनुमान जी उस आदमी पर अवतरित हो रहे हैं।  हनुमान जी की शक्ति का एक धूल के कण के बराबर शक्ति एक इंसान में प्रवेश करती है और वह हनुमान जी के स्वरूप के रूप में नाचती है। गंगा नदी से एक बूंद गंगाजल पीने का अर्थ यह नहीं होता है कि आपने संपूर्ण गंगा पी ली है।  आपको यह समझना होगा कि संपूर्ण गंगा एक अलग चीज है, और उस संपूर्ण गंगा का "एक बूंद" जल अलग चीज है।  तो बस इसी अर्थ को समझना होगा।  जो इस अर्थ को समझ गया उसे अध्यात्म का ज्ञान हो गया और जो नहीं समझा उसने इसे "अंधविश्वास" का नाम दे दिया बस यही अंतर है। 

और वैसे भी आपको एक बात बता दूँ कि पूर्ण हनुमान जी किसी पर भी नहीं आ सकते हैं।  किसी भी इंसान के शरीर का इतना सामर्थ्य नहीं है कि वह हनुमान जी को अपने में समावेशित कर सके। मानव शरीर, पूर्ण हनुमान जी के दसवें हिस्से को भी नहीं सह सकता, इंसान के शरीर के चीथड़े उड़ जाएंगे। महायोध्या बाली जैसा बलशाली, हनुमान जी की दसवें हिस्से की शक्ति को नहीं सह पाया तो हम इंसान क्या है। 

अगर ये सच है तो अन्धविश्वास क्या है?
अंधविश्वास क्या होता है ? उसको आपको समझना होगा। एक डॉक्टर, एक मरीज का ऑपरेशन कर रहा होता है।  और आप ऑपरेशन थिएटर के बाहर खड़े होकर इन्ही देवी देवता से प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु ! हे ईश्वर ! मेरे इस संबंधी को बचा लीजिए। और आप उस डॉक्टर पर पूर्ण रूप से विश्वास कर रहे होते हैं कि वह सही कर देगा। जबकि यही पूर्ण विश्वास एक प्रकार का पूर्ण अंध विश्वास है। ऑपरेशन थिएटर के बाहर आने के बाद डॉक्टर आपको बोल सकता है कि आई एम सॉरी , हम आपके संबंधी को बचा नहीं पाए। तो क्या यह डॉक्टर का फेलियर नहीं था? तो क्या यह आपका अन्धविश्वास नहीं था डॉक्टर पर ? 



जबकि डॉक्टर ने क्या मेडिकल पढ़ाई की है ? कैसे पढ़ाई की है ?  कैसे वह पढ़ने में था ? क्या उसका रैंक था मेडिकल कॉलेज में ? आपको कुछ पता नहीं होता है ,लेकिन आपने उस पर अंधा -विश्वास किया है। आपको पता है कि डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर के अंदर गया है तो हमारे मरीज को सही कर देंगे।  जबकि आपको नहीं पता कि वह कैसे करेगा ? लेकिन ऑपरेशन थिएटर के बाहर आप इस देवी देवता इस ईश्वर से , इस प्रभु से हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रहे होते हैं कि हे प्रभु मेरे संबंधी को बचा लीजिये। अब बोलिए अंधविश्वास कहां था उस डॉक्टर पर या उस प्रभु पर, उस  ईश्वर पर जिसके आगे अब हाथ जोड़ रहे हैं।  यह सारी बातें सोचने वाली है और विचारणीय भी। 

कहानी का सार - आज की इस कहानी का सार यही है कि हम इंसानों को विश्वास और अंधविश्वास की लड़ाई में अपना समय बर्बाद नहीं करना है।  क्योंकि किसी भी क्रियाकलाप का यदि इस संसार में अस्तित्व है तो आपके या हमारे मानने या न मानने से उसके अस्तित्व पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है।  अगर आत्मा भूत प्रेत होते हैं, और उनका अस्तित्व है, तो आपके मानने और न मानने से उनके अस्तित्व पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ेगा।  अतः हमें विश्वास और अंधविश्वास के बीच का जो गैप है, एक बारीक गैप , उस  गैप को समझना होगा तभी जाकर हम इस युद्ध को जीत पाएंगे अन्यथा विश्वास और अंधविश्वास की लड़ाई यूं ही चलती रहेगी। 

मेरी कहानियां

मैं एक बहुत ही साधारण किस्म का लेखक हूँ जो अपनी अंतरात्मा से निकली हुई आवाज़ को शब्दों के माध्यम से आप तक पहुँचाता हूँ

1 टिप्पणियाँ

आपके इस कमेंट के लिए बहुत बहुत साधुवाद

  1. अति उत्तम, अदृश्य शक्तियां होती है या तो मैं भी मानता हूं जय हो ।

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